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ज़िंदगी एक उत्सव है,जिसे रोज़ हम मनाते हैं।
जन्मदिन का भोज ,कभी शादी की दावत उड़ाते हैं।
मगर खुशियों के इस मेले में कुछ भूले हैं हम,
भूखे बच्चे की पुकार, टूटता किसी कमज़ोर वृद्ध का दम।
खुशियों में शामिल करें उस किसान को ।
सींच धरती का आंचल जिसने पुकारा आसमान को।
सब मिल लेंगे यह प्रण,
अब ना बहेगा कचरे में अन्न,
अब ना दुखेगा किसिका मन।
सारथी का साथ देंगे हर जन।